सुप्रीम कोर्ट का स्वतः संज्ञान : थानों में गैर-कार्यक्षम सीसीटीवी कैमरों पर न्यायपालिका की समयोचित हस्तक्षेप
दिनांक 4 सितम्बर 2025 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ के समक्ष, देशभर के थानों में गैर-कार्यक्षम सीसीटीवी कैमरों की गंभीर समस्या पर स्वतः संज्ञान लिया। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के आधार पर यह कदम उठाया गया, जिसमें खुलासा हुआ कि पिछले 7–8 महीनों में 11 लोगों की पुलिस हिरासत में मृत्यु हुई है। यह घटना हमारे कानून-व्यवस्था तंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता की गहरी कमी को उजागर करती है।
यह याद रखना आवश्यक है कि परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह (2020) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रत्येक पुलिस थाने में कार्यशील सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे। किंतु लगभग पाँच वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिकांश स्थानों पर न तो कैमरे लगाए गए हैं और न ही लगे हुए कैमरे सही स्थिति में हैं।
न्यायालय की अत्यंत सराहनीय टिप्पणी:
माननीय खंडपीठ ने यह टिप्पणी की कि स्पष्ट न्यायिक आदेशों के बावजूद हिरासत में हो रही मौतें गंभीर संवैधानिक चिंता का विषय हैं। न्यायालय ने कहा कि सीसीटीवी कैमरों की स्थापना का मूल उद्देश्य – जवाबदेही, पारदर्शिता और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा – कई राज्यों में केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। यह अवलोकन न्यायपालिका की नागरिकों के अनुच्छेद 21 – जीवन और गरिमा के अधिकार की रक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
डॉ. एंथनी राजू (प्रख्यात संवैधानिक विशेषज्ञ एवं मानवाधिकार रक्षक) की कड़ी समीक्षा:
“हिरासत में हिंसा केवल मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह सीधे-सीधे अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार पर हमला है। सुप्रीम कोर्ट का यह समयोचित हस्तक्षेप सरकारों को पुनः उनके संवैधानिक दायित्व की याद दिलाता है कि उनका कर्तव्य नागरिकों की रक्षा करना है, न कि उन्हें प्रताड़ित करना। सीसीटीवी निगरानी को लागू न करना और आदेशों के बावजूद ढिलाई बरतना शासन-तंत्र की उदासीनता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है। अब समय आ गया है कि दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग व्यवस्था स्थापित हो। मानव गरिमा और क़ानून का शासन किसी भी स्थिति में समझौते का विषय नहीं हो सकते।”
यह स्वतः संज्ञान कार्यपालिका और पुलिस तंत्र दोनों के लिए चेतावनी है। अनुच्छेद 21 की पवित्रता और हिरासत में मौतों पर शून्य सहिष्णुता की नीति को सुनिश्चित करने के लिए तत्काल और सख्त अनुपालन अनिवार्य है।
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